Story

ट्रांसजेंडर्स: लैंगिक समानता की लड़ाई में क्यों हैं अब तक दरकिनार?

Story

ट्रांसजेंडर्स: लैंगिक समानता की लड़ाई में क्यों हैं अब तक दरकिनार?

राजधानी के सभी मुख्य ट्रैफिक सिग्नल पर आपको एक, दो चीज़े सामन्यतः दिख जाती है। गुब्बारे और गाड़ी साफ करने वाली झाड़ू बेचते बच्चे। कभी कभी वो आपको ढोल बजाते और करतब दिखा कर पैसे मांगते भी नजर आएंगे। इसके अलावा एक और चीज जो सामान्य है वह है किन्नर समुदाय के लोगों द्वारा पैसे मांगना। वह लोग अक्सर आपकी गाड़ियों के शीशे के पास आ कर तालियां बजाते हैं और कुछ रुपयों की मांग करते हैं। यह इतना आम है कि हम में से ज्यादातर लोगों ने इस पर ध्यान देना भी छोड़ दिया है। कई बार हम इन्हें दस का नोट थमाकर या अधिकतर नजरंदाज कर आगे बढ़ जाते हैं। सबसे पहले हमें इस वर्ग के लोगों को समझने की जरूरत है। हमारे आस पास यह धारणा प्रचलित है कि किन्नर और ट्रांसजेंडर शब्द एक ही हैं। लेकिन यह दो अलग पहचान हैं। ट्रांसजेंडर उस स्त्री या पुरुष को कहते हैं जिसकी पहचान जन्मजात लिंग से न होकर दूसरे लिंग के रूप में हो, या जिसने लिंग-परिवर्तन किया हो । वहीं किन्नर बाकी ट्रांसजेंडर लोगों से इस रूप में भिन्न होते हैं कि वे अपने आप को पुल्लिंग या स्त्रीलिंग नहीं मानते हैं पर तृतीय लिंग यानी थर्ड जेंडर मानते हैं। किन्नर समुदाय के लोग धार्मिक अनुष्ठानों में हिस्सा लेते हैं या उत्सवों में नाच-गान करते हैं। यह लोग गुरु-चेला परम्परा का अनुसरण करते हैं। यह लोग जन्मों और शादियों में नाच-गाकर और जश्न मनाकर अपनी जीविका चलाते हैं। अक्सर दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए इन्हें अन्य तरीकों का सहारा लेना पड़ता है। वर्षों से यह समुदाय मुख्यधारा से जुड़ने की कोशिश कर रहा है। भारत में 2011 की जनगणना से पहले तक ट्रांसजेंडर और किन्नरों की संख्या की कभी गणना नहीं की गई थी। इस जनगणना के आधार पर देश में 48 लाख से ज्यादा भारतीयों ने खुद को ट्रांसजेंडर के तौर पर पहचाना। अब इनकी संख्या में जाहिर तौर पर इजाफा हुआ है। लेकिन इनमें से अधिकतर आज भी सड़कों पर हैं। इनके लिए आजीविका के माध्यम तो हैं लेकिन यह समाज में अवहेलना का शिकार हो रहे हैं। शांता 38 साल की हैं। वह नियमित ही सरोजनी नगर के पास के सिग्नल पर दिख जाती हैं। उन्हें किन्नर होने की वजह से बहुत कम उम्र में ही घर से निकल दिया गया था। वह बताती हैं कि उन्हें याद भी नहीं है कि वह कब से सड़क पर मांगने का काम करने लगी। घर छोड़ने के कई दिन बाद तक उन्हें सड़क पर ही सोना पड़ा। इसके बाद किसी किन्नर की नज़र उन पर पड़ी। वह उन्हें उनकी गुरु के पास ले गई। उसके बाद वह उनके तौर तरीकों को सीख कर पिछले कई सालों से शादियों में नाच गा कर या इस तरह सड़क पर भीख मांग कर अपना गुज़ारा कर रही हैं। यह पूछने पर कि वह कोई और दूसरा काम क्यों नहीं ढूंढती, वह कहती हैं कि पूरी उम्र इसी तरह निकल गई। ना ही उन्होंने कभी पढ़ाई की और ना ही कोई कौशल सीखा। उनका कहना है कि किन्नरों को कोई अपने घर नौकर भी नहीं रखता। आखिर किन्नरों और ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है? किन्नरों की सबसे पहली लड़ाई अस्तित्व की है। भारत में सभी तरह के बाइनरी महिलाओं और पुरुषों को तीन कैटेगरी में बांटा जाता है, महिला, पुरुष और अन्य। इस प्रकार ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स और अन्य गैर बाइनरी पहचान रखने वाले लोगों को उनके वास्तविक प्रतिनिधत्व से बाहर रखा गया है। ट्रांसजेंडर एक व्यापक शब्द है जिसमें ट्रांसमेन और ट्रांसवुमेन शामिल हैं। दोनों में अंतर स्पष्ट है लेकिन सार्वजनिक बुनियादी ढांचे तक पहुँचने में उनके सामने आने वाली चुनौतियाँ अलग-अलग हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, टॉयलेट्स की बात करे तो यहां इन लोगों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पब्लिक टॉयलेट्स पर हमेशा महिला या पुरुष लिखा हुआ ही पाया जाता है। यह साफ है कि यहां जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट्स बहुत कम हैं। 2017 में सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत ट्रांसजेंडर्स को पब्लिक टॉयलेट्स में जाने देने को अनिवार्य किया था। वह लोग यह चुन सकते हैं कि वह महिला या पुरुष में से कौन सी टॉयलेट का उपयोग करना चाहते हैं। इन मांगों को लेकर असम के एक क्षेत्रीय एलजीबीटी समूह के लोगों ने कुछ समय पहले ही #नोमोरहोल्डिंगमाईपी के नाम से एक अभियान चलाया था। उन लोगों का कहना है कि सार्वजनिक जगहों पर मूलभूत सुविधाओं के लिए भी उनका संघर्ष अब तक जारी है। देश के अस्पतालों में ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग वार्ड नहीं हैं। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार 20% ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को खास तरह की स्वास्थ्य देखभाल की जरूरत है लेकिन यह जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है। अन्य कमियों की ओर देखे तो 2011 की जनगणना के आधार पर इस वर्ग के लोगों में साक्षरता दर 43% है। इसकी तुलना देश के साक्षरता दर(74%) से की जाए तो यह बेहद कम है। इसके अलावा किन्नरों को सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक रूप से भी कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। अक्सर इनके साथ मारपीट और अभद्रता की जाती है। इसका असर इनके मानसिक स्वास्थ्य पर तो पड़ता ही है, साथ ही यह लोग समाज की मुख्य धारा से और दूर हो जाते हैं। घर पर किन्नरों के साथ मार पीट और हिंसा दोहराई जाती है। मजबूरन यह लोग घर छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। समाज में यह लोग निरंतर भेदभाव का शिकार होते हैं। इन सभी परेशानियों को ध्यान में रखते हुए संसद में 2019 में “ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019” को पारित किया गया। इससे पहले वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों और उनकी लैंगिक पहचान के बारे में निर्णय लेने के उनके अधिकार को मान्यता दी थी। 2019 में बनाए गए इस कानून के अंतर्गत कई प्रावधान दिए गए हैं। इनमें सबसे प्रमुख है ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ होने वाले भेदभाव को पूरी तरह से प्रतिबंधित करना। इसमें निम्नलिखित के संबंध में सेवा प्रदान करने से इनकार करना या अनुचित व्यवहार करना शामिल है: (1) शिक्षा (2) रोज़गार (3) स्वास्थ्य सेवा (4) सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध उत्पादों, सुविधाओं और अवसरों तक पहुँच एवं उनका उपभोग (5) कहीं आने-जाने का अधिकार (6) किसी मकान में निवास करने, उसे किराये पर लेने और स्वामित्व हासिल करने का अधिकार (7) सार्वजनिक या निजी पद ग्रहण करने का अवसर। इसके अलावा पहचान का प्रमाण पत्र इस योजना की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति ज़िला मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकता है कि ट्रांसजेंडर के रूप में उसकी पहचान से जुड़ा सर्टिफिकेट जारी किया जाए। इसमें समान अवसर नीति की बात भी कही गई है। प्रत्येक प्रतिष्ठान को कानून के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये समान अवसर नीति तैयार करने के लिये बाध्य किया गया है। इससे समावेशी प्रतिष्ठान बनाने में मदद मिलेगी। समावेश की प्रक्रिया के लिये अस्पतालों और वॉशरूम (यूनिसेक्स शौचालय) में अलग-अलग वार्डों जैसी बुनियादी सुविधाओं के निर्माण की भी आवश्यकता को भी पूरा किया जाएगा। प्रत्येक प्रतिष्ठान को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिकायतों को सुनाने के लिये एक व्यक्ति को शिकायत अधिकारी के रूप में नामित करने के लिये बाध्य किया गया है। इस कानून के तहत प्रत्येक राज्य सरकार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ अपराध की निगरानी के लिये ज़िला पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिदेशक के तहत एक ट्रांसजेंडर संरक्षण सेल का गठन करना होगा। इसमें इस बात का भी उल्लेख है कि सरकार समाज में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पूर्ण समावेश और भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाएगी। वह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बचाव एवं पुनर्वास तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं स्वरोजगार के लिये कदम उठाएगी, ट्रांसजेंडर संवेदी योजनाओं का सृजन करेगी और सांस्कृतिक क्रियाकलापों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करेगी। इसके अलावा सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिये कदम उठाएगी जिसमें अलग एचआईवी सर्विलांस सेंटर, सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी इत्यादि शामिल है। सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के स्वास्थ्य से जुड़े मामलों को संबोधित करने के लिये चिकित्सा पाठ्यक्रम की समीक्षा करेगी और उन्हें समग्र चिकित्सा बीमा योजनाएँ प्रदान करेगी। इन सब के अलावा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के संबंध में नीतियाँ, विधान और योजनाएँ बनाने एवं उनका निरीक्षण करने के लिये राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद का गठन किया जाएगा जो केंद्र सरकार को सलाह प्रदान करेगी। यह ट्रांसजेंडर लोगों की शिकायतों का निवारण भी करेगी। इस कानून में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भीख मंगवाना, बलपूर्वक या बंधुआ मज़दूरी करवाना या सार्वजनिक स्थान का प्रयोग करने से रोकना, परिवार, गाँव इत्यादि में रहने से रोकना, और उनका शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक तथा आर्थिक उत्पीड़न करने को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इन अपराधों के लिये छह महीने और दो वर्ष की सजा का प्रावधान है साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। इसी कड़ी में इस समुदाय के लोगों को एक स्वाभिमानी जिंदगी जीने में मदद करने के लिए भारत सरकार ‘स्माइल’ स्कीम लेकर आई है। इस स्कीम के तहत गरिमा गृह बनाए गए हैं। गरिमा गृह का लक्ष्य ट्रांसजेंडर को उनका हक दिलाना और उनके अधिकारों से अवगत करवाना है। उनकी पढ़ाई से लेकर नौकरी दिलवाने तक में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस वक्त देश में 12 गरिमा गृह संचालित हैं। दिल्ली में इसका संचालन ‘मित्र ट्रस्ट’ कर रहा है। मित्र ट्रस्ट अब तक सैकड़ों ट्रांसजेंडर की जिंदगी को सवार चुका है। यहां हमारी मुलाकात ट्रांसजेंडर्स के लिए एक प्रेरणा बन चुकी दीपिका से हुई। दीपिका कहती हैं कि 2015 से वह मित्र ट्रस्ट के साथ जुड़ी हुई हैं। एक वक्त ऐसा भी था जब उन्हें पैसों के लिए सेक्स वर्क करना पड़ा जो उनकी जिंदगी का सबसे बुरा दौर रहा। पर अब सबकुछ ठीक है। उन्हें अपना लाइफ पार्टनर भी मिल गया है और वह काफ़ी खुश हैं। आज वह मंत्रालय (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय) के साथ काम कर रही हैं और उन्हें यह पहचान ‘मित्र’ और गरिमा गृह की वजह से ही मिली। गरिमा गृह में उन्हें प्यार और अपना परिवार मिला। उन्होंने सड़क पर भीख मांगने को लेकर कहा, “मुझे नहीं लगता कि कोई भी मजबूरी इतनी बड़ी होती है कि आपको लोगों के आगे हाथ फैलाना पड़े। आपको यह समझना होगा कि आप किसी से अलग नहीं हैं। आप भी औरों की तरह मेहनत करके पैसे कमा सकते हैं। आप अपनी हॉबी को रोजगार मे बदलने के अवसर तलाशिये। इसके लिए आपको अपने घरों से बाहर निकलना होगा। मेहनत करनी होगी। पढ़ाई-लिखाई करनी चाहिए। अपने अधिकारों को जानकर आगे बढ़ने की कोशिश करे।” वह आगे कहती हैं, “हमें आयुष्मान कार्ड और ट्रांसजेंडर आइडेंटीटी कार्ड जैसी सुविधाएं मिलती है। इसके अलावा पढ़ाई के लिए सरकार हमें बहुत सारी स्कॉलरशिप भी देती हैं। रोजगार मुहैया करवाने में भी सरकार काफी मदद करती है। पर इस सब के लिए आपके घर से बाहर निकलना होगा।” अंततः हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि देश के सभी ट्रांसजेंडर्स और किन्नरों तक जागरूकता फैले। सही मायने में लैंगिक समानता तभी होगी जब हर लिंग के व्यक्ति को समान अधिकार और समान मौके मिलेंगे।

Write a comment ...

जागृति

प्रशिक्षु पत्रकार, भारतीय जन संचार संस्थान।