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सारी दुनिया पर मैं छाऊँ.….बस इतना सा ख्वाब है.

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सारी दुनिया पर मैं छाऊँ.….बस इतना सा ख्वाब है.

शाहरुख, सिनेमा, और तीन दशकों से चमकता यह सितारा 'आय एम नॉट हेयर टू कम्पीट, आय एम हेयर टू रूल।' (मैं यहां किसी से जीतने नहीं आया हूँ, मैं यहां राज करने आया हूँ। यह चंद पंक्तियां फिल्मी दुनिया के बादशाह शाहरुख खान के बारे में बहुत कुछ बयां करती है। एक साक्षात्कार में जब शाहरुख से यह पूछा गया कि वह अपना प्रतिद्वंदी किसे मानते हैं, उन्होंने यह जवाब दिया। बहुत कम लोग जानते हैं कि 2 नवंबर 1965 को नई दिल्ली के मध्यमवर्गी परिवार में जन्में शाहरुख की दिलचस्पी पहले स्पोर्ट्स में थी। लेकिन उनकी किस्मत में कुछ ऐसा लिखा था, जिसकी कल्पना उन्होंने भी नहीं की थी। कंधे पर चोट लगने की वजह से वह खेल से दूर हो गए और थिएटर करने लगे। यहीं से ऐक्टिंग की शुरुआत हुई और फिर देखते ही देखते वह सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं, लोगों के दिलों पर भी छा गए। दिल्ली से हन्सराज कॉलेज से इक्नॉमिक्स में स्नातक किया और फिर जामिया मिलिया इस्लामिया से मास मीडिया की पढ़ाई की। हालांकि शाहरुख ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और पर्दे की दुनिया में कदम रखा। टेलीविजन पर पहले 'फौजी', फिर 'सर्कस' और फिर 'इडियट' जैसे शोज़ में शाहरुख ने सहज अभिनय किया तो फिल्मों से भी प्रस्ताव आने लगे। अभिनेत्री हेमा मालिनी के निर्देशन में बन रही फिल्म 'दिल आशना है' के लिए शाहरुख खान को चुना गया। इसकी शूटिंग भी शुरू हो गई । पर किसी कारणवश फिल्म रिलीज नही हो पाई । इस दौरान एक और फिल्म की शूटिंग हो गई थी और वह बन गई शाहरुख की पहली फिल्म। नाम था 'दीवाना'। जून 1992 में रिलीज हुई ऋषी कपूर और उस वक्त की सबसे जानी मानी अभिनेत्री दिव्या भारती जैसे कलाकारों से सजी इस फिल्म में शाहरुख का किरदार साइड रोल का था। पर इस फिल्म में अपने चॉकलेटी लुक्स और रोमांस करने के अन्दाज़ से शाहरुख लोकप्रिय हो गए । इंडस्ट्री को एक नया हीरो मिल गया। फिर एक कर बाद फिल्में शाहरुख का इंतज़ार करने लगी। चमत्कार, राजू बन गया जेंटलमैन जैसी फिल्मों से शुरुआत करने के बाद शाहरुख को असली प्रसिद्धि मिली एंटी हीरो कैरेक्टर से। डर और बाजीगर जैसी फिल्में सुपरहिट साबित हुई। इसके बाद रोमांटिक फ़िल्मों का दौर शुरू हुआ। 1995 के बाद सुपरहिट फिल्मों का सिलसिला रुका नही। इस साल आदित्य चोपड़ा द्वारा निर्देशित, काजोल के साथ आई दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे ने तो सफलता का इतिहास लिख दिया। फिल्म मुंबई के मराठा मन्दिर हॉल में 25 साल से ज्यादा समय तक लगी रही। इसके बाद कुछ कुछ होता है, स्वदेश, दिल से, वीर जारा, कभी खुशी कभी गम, कल हो ना हो, मैं हूं ना, कभी अलविदा ना कहना सहित 90 से ज्यादा फ़िल्में शाहरुख की कामयाबी की कहानी बयां करते हैं। 2002 में रिलीज हुई फिल्म देवदास और 2011 में आई माय नेम इज़ खान से शाहरुख ने फिल्म समीक्षकों को भी अपनी अभिनय का लोहा मनवाया। लेकिन फ़िल्मों से इतर शाहरुख अपने फैन्स के बीच अपनी विनम्रता, मजाकिया अन्दाज़, और सहजता के लिए जाने जाते है। कोई भी सह कलाकार उनके बारे में यहीं कहता है कि शाहरुख जिस तरह महिलाओं की इज्जत करते हैं, उन्हें जो सम्मान देते है, वह काबिले तारीफ है। बीते 2 नवंबर को शाहरुख ने अपना 58वां जन्मदिन मनाया।उम्र के इस पड़ाव पर और कैमरे के सामने 3 दशक से ज्यादा का समय बिताने के बाद भी शाहरुख आज भी उतने ही मेहनत, लगन और ईमानदारी से काम करतें हैं। इस बात को हाल ही में रिलीज हुई उनकी दो फिल्मों ने साबित भी कर दिया। पहले जवान और फिर पठान ने 1000 करोड़ से ज्यादा का कारोबार किया। इन फ़िल्मों ने बॉलीवुड की डूबती अर्थव्यस्था में भी नई जान फूंक दी। 14 फिल्मफेयर अवॉर्ड और भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से नवाजे गए शाहरुख यहीं मानते हैं कि उनकी असली पूंजी उनका परिवार और उनके लाखों फैन्स हैं। एक साक्षात्कार में शाहरुख कहतें हैं- 'अगर कामयाब बनना है तो नींद, खाना पीना, आराम सब त्याग दो। यह सब बकवास है कि आप 8 घण्टे सोइये, आराम करिए। बिना संघर्ष के सफलता नही मिलती है'।।।

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जागृति

प्रशिक्षु पत्रकार, भारतीय जन संचार संस्थान।