देख रहा है विनोद…”। पंचायत वेब सीरीज का यह लोकप्रिय डायलॉग लोगों की जुबान पर है। इस वेब सीरीज ने पंचायती राज की खूबियों और कमियों पर बेहद दिलचस्प तरीके से रोशनी डाली। वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के हिसाब से भारत की लगभग 65 फीसदी आबादी गांवों में रहती है। यह तय है कि विकसित भारत के सपने को पूरा करने में पंचायतों की भूमिका अहम होगी। 1992 में देश में पंचायती राज और स्थानीय निकायों की भूमिका को सशक्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के जरिए देश में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण यानी डेमोक्रेटिक डिसेंट्रलाइजेशन को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया। पंचायती राज देश में प्रभावी और कुशल योजना बनाने में योगदान दे रहा है। गांवों के लोगों की जरूरतें और महत्वकांक्षाओं को नीति बनाने वालों तक पहुंचाना और उन नीतियों को लागू कराने की पूरी जिम्मेदारी ग्राम पंचायत की होती है। ग्राम पंचायत लोगों की समस्याओं को जमीनी स्तर से समझता है। साथ ही यह पहचान करता है कि गांव के लोगों को किस तरह योजनाओं की जरूरत है और उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं। मनरेगा जैसी योजनाओं को सफल बनाने का श्रेय पंचायती राज को जाता है। सबसे गौर करने वाली बात यह है कि वन साइज फिट्स ऑल दृष्टिकोण से आगे बढ़ कर काम करती है। पंचायती राज की व्यवस्था ने देश में सुशासन सुनिश्चित करने में भी योगदान दिया है। लोगों की भागीदारी और सर्वसम्मति से फैसले लेकर अंतिम छोर पर रह रहे लोगों को भी सशक्त करना ही ग्राम स्वाधीनता का लक्ष्य था। इस व्यवस्था ने महिलाओं, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के प्रतिनिधित्व को निर्धारित कर उन्हें सशक्त किया है। इस कड़ी में सफलता के कई उदाहरण भी हैं। गुजरात के व्यारा जिले के छोटे से गांव की मीना बहन अपने गांव की पहली महिला सरपंच हैं। 65 साल बाद उनके गांव का अपना पंचायत बोर्ड है और वह भी पूरी तरह से महिला पंचायत बोर्ड। इस तरह छवि रजावत ग्रामीण राजस्थान का चेहरा बदलने वाली महिला के रूप में प्रसिद्ध हैं। अभिनव परियोजनाओं के साथ, वह सोडा नामक अपने पैतृक गांव में बेहतर पानी, सौर ऊर्जा, पक्की सड़कें, शौचालय और एक बैंक भी लेकर आई हैं। नौकरशाही को अपने रास्ते में न आने देते हुए, उन्होंने अकेले ही अपने गांव में कई परियोजनाओं को सक्षम बनाया है। उन्होंने अमेरिका के न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में एक गरीबी सम्मेलन को भी संबोधित किया है। इन सब के बीच पंचायती राज कुछ कमियों से भी गुजर रहा है। पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना का सबसे प्रमुख लक्ष्य शासन की शक्तियों और कार्यों का विकेंद्रीकरण करना था, परंतु वर्तमान में अधिकांश राजनीतिक दल और सरकारों के हस्तक्षेप के कारण पंचायती व्यवस्था अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं रही है। पंचायतों को अपनी वित्तीय आवश्यकताओं के लिये राज्य सरकारों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिसके कारण पंचायतों की स्वायत्तता प्रभावित होती है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों की व्यवस्था में प्रत्यक्ष रूप से महिलाओं की सक्रिय भूमिका की कमी पंचायती व्यवस्था की सबसे बड़ी असफलता है। देश के अधिकांश भागों में पंचायत स्तर पर जनता तथा जन प्रतिनिधियों में जागरूकता और तकनीकी साक्षरता के अभाव के कारण ग्रामीण जनता को सरकार द्वारा चलाई गई अनेक योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। स्थानीय विकास के लिये आवश्यक योजनाओं के निर्धारण और उनके क्रियान्वयन के लिये पंचायतों का आत्मनिर्भर न होना पंचायती व्यवस्था के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। आज भी भारत की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है पर ज़्यादातर ग्रामीणों के पास अपनी आवासीय संपत्ति के आधिकारिक प्रमाण-पत्र नहीं हैं। संपत्ति के प्रमाणिक आँकड़ों के अभाव में पंचायतों के पास कर निर्धारण और कर वसूल करने के लिये कोई आधार नहीं होता है। इस समस्या से लड़ने के लिए केंद्र सरकार ने 2020 में स्वामित्व योजना की शुरुआत की। यह योजना पंचायती राज मंत्रालय, राज्यों के पंचायती राज विभाग, राज्य राजस्व विभाग और भारतीय सर्वेक्षण विभाग के सहयोग से चलाई जाएगी। इस योजना के तहत ड्रोन और अन्य नवीनतम तकनीकों की सहायता से रिहाइशी भूमि का सीमांकन कर ग्रामीण क्षेत्रों में एकीकृत संपत्ति सत्यापन की एक व्यवस्था स्थापित की जाएगी। इसके तहत गाँव की सीमा के भीतर आने वाली प्रत्येक संपत्ति का डिजिटल रूप नक्शा बनाया जाएगा और प्रत्येक राजस्व खंड की सीमा का निर्धारण किया जाएगा। इस योजना के माध्यम से गावों और ग्राम पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों को आधार प्रदान करने में सहायता प्राप्त होगी। साथ ही संपत्ति कर के माध्यम से ग्राम पंचायतों को आमदनी के एक स्थायी स्रोत और स्थानीय व्यवस्था के लिये अतिरिक्त संसाधन का प्रबंध किया जा सकेगा। इसके अलावा सरकार ने 2023 में ई-ग्राम स्वराज-जीईएम एकीकरण की भी शुरुआत की। इसका उद्देश्य पंचायतों को ई-ग्राम स्वराज प्लेटफॉर्म का लाभ उठाते हुए जीईएम के माध्यम से अपनी वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने में सक्षम बनाना है। यह पूरे क्रेता-विक्रेता पारिस्थितिकी तंत्र को फलने-फूलने में मदद करेगा, जिससे डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को मजबूत करने के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था और उद्यमशीलता को बड़ा बढ़ावा मिलेगा। जीईएम का मौजूदा उपयोगकर्ता आधार लगभग 60,000 है जिसे चरणबद्ध तरीके से 3 लाख से अधिक तक बढ़ाने की कल्पना की गई है। इसके कई उद्देश्य हैं। इसमें प्रमुख है प्रक्रिया को डिजिटल बनाकर पंचायतों द्वारा खरीद में पारदर्शिता लाना और स्थानीय विक्रेताओं (मालिकों, स्वयं सहायता समूहों, सहकारी समितियों आदि) को इस पर पंजीकरण करने के लिए प्रोत्साहित करना क्योंकि पंचायतें बड़े पैमाने पर ऐसे विक्रेताओं से खरीदारी करती हैं। इससे पंचायतों को मानकीकृत करने और प्रतिस्पर्धी दरों पर गुणवत्ता-सुनिश्चित वस्तुओं की डोरस्टेप डिलीवरी तक पहुंच प्राप्त होगी। ई-ग्राम स्वराज प्लेटफॉर्म 2020 में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर लॉन्च किया गया था। इसे योजना से लेकर ऑनलाइन भुगतान तक पंचायतों के सभी दिन-प्रतिदिन के कामकाज के लिए एकल खिड़की समाधान के रूप में संचालित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। जियो टैगिंग ऑफ एसेट्स पंचायती राज मंत्रालय ने विकसित किया है, जो उन कार्यों के लिये जियो-टैग के साथ फोटो खींचने में मदद करने के लिये एक मोबाइल-बेस्ड सोल्यूशन है। सेवाओं के मानक के संबंध में अपने नागरिकों के प्रति पंचायती राज व्यवस्था की प्रतिबद्धता पर ध्यान केंद्रित करने के लिये पंचायती राज मंत्रालय ने ‘मेरी पंचायत मेरा अधिकार - जन सेवाएँ हमारे द्वार’ के नारे के साथ सिटीज़न चार्टर की शुरुआत की है। यह दस्तावेज़ों को अपलोड करने के लिये एक मंच प्रदान किया है। नवलेश कुमार किरण बिहार के नवादा जिले के मनकपुर पंचायत के मुखिया हैं। वह कहते हैं कि इन योजनाओं के आने के बाद निश्चित तौर पर कमियां दूर होगी। जियो टैगिंग की मदद से मनरेगा की योजनाओं का निरीक्षण सही तरीके से होगा। अन्य तकनीक जैसे नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में सहायता मिलेगी। इस तरह तकनीक ग्राम पंचायत की कमियों को दूर करने में काफी हद तक सक्षम है। गांधी जी के शब्दों में “यदि हम पंचायत राज यानी सच्चे लोकतंत्र के अपने सपने को साकार होते देखेंगे तो हम सबसे दीन और निम्नतम भारतीय को भी दुनिया के सबसे प्रभावशाली भारतीय के ही समान भारत के शासक के रूप में देखेंगे”।
लद्दाख: अस्थिरता और आंदोलन के बीच छठी अनुसूची में शामिल होने की जद्दोजहद
लद्दाख। भारत के इस केंद्र शासित प्रदेश का नाम सुन कर आपने मन में क्या छवि उभरती है? दर्शनीय पहाड़ों और चट्टानों से घिरा हुआ वो मनमोहक दृश्य, उन पहाड़ों पर छनकर इंद्रधनुषी चित्र बनाती सूरज की किरणें, प्राचीन मठों की शांति, बाइक राइड वाली लंबी और रोमांचक सड़के और भी बहुत कुछ। लेकिन लद्दाख में इस वक्त हालात ठीक नहीं हैं। क्यों लद्दाख की शांति को लगी है नजर? क्या कुछ ठीक नहीं है लद्दाख में और इन सब के बीच क्यों चर्चा में हैं मशहूर वैज्ञानिक सोनम वांगचुक। इन सब सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं। लद्दाख में सब कुछ ठीक नहीं है। पूर्ण राज्य का दर्जा देने और लद्दाख को संविधान के छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर स्थानीय लोग आंदोलनरत हैं। और इन लोगों में एक नाम जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है मशहूर पर्यावरणविद सोनम वांगचुक का।सोनम वांगचुक उस वक्त काफी सुर्खियों में आए थे जब मशहूर फिल्म थ्री इडियट में आमिर खान ने उनका रोल निभाया था। लेकिन इस बार वजह कुछ और है। रैमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित सोनम वांगचुक ने पिछले दिनों लेह में 21 दिनों का आमरण अनशन किया था। बीते 6 मार्च को उन्होंने '#SAVELADAKH, #SAVEHIMALAYAS' के अभियान के साथ यह आमरण अनशन शुरू किया था। कड़ाके की ठंड के बीच यह आंदोलन तब शुरू हुआ जब केंद्र सरकार और लेह स्थित कारगिल डेमोक्रेटिक अलायन्स के प्रतिनिधियों के बीच की बातचीत डेडलॉक की स्थिति पर पहुंच गई। ये डेडलॉक मुख्यतः चार मांगों को लेकर था। सरकार से उनकी कुछ मांगे हैं। दरअसल 2019 में धारा 370 के प्रभाव के खत्म होने के बाद जम्मू कश्मीर राज्य दो हिस्सों में बट गया था। जम्मू कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया था। लेकिन अब लद्दाख के लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार उन्हें भूल गई है। कई बार उन्हें यह भरोसा दिलवाया गया कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जायेगा। चुनावी वादों में भी इसका जिक्र हुआ। लेकिन अब तक उनकी मांगे पूरी नहीं हुई। उनकी प्रमुख मांग यह है कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलें। इसके अलावा लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाए। एक अन्य मांग यह भी है कि लेह और करगिल के लिए अलग अलग लोकसभा सीट सुनिश्चित की जाए। इसके अलावा लद्दाख में अलग स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन की व्यवस्था की जाए। अब जानते हैं कि यह मांगे क्यों उठ रही हैं। छठी अनुसूची के किसी भी इलाके में अलग तरह की स्वायत्ता होती है। संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275 (1) में विशेष व्यवस्था दी गई है। जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा होने पर लद्दाख के पास यह विशेष अधिकार था। पूर्वोत्तर के कई राज्यों असम, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम में आज भी यह विशेष व्यवस्था लागू है। इसका फायदा यह है कि यहां इनका अपना प्रशासन है। इसे लागू होने के बाद खास इलाके में कामकाज को सामान्य बनाने के इरादे से स्वायत्त जिले बनाए जा सकते हैं। इनमें 30 सदस्य रखे जाते हैं। चार सदस्य राज्यपाल नामित करते हैं। बाकी स्थानीय जनता से चुनकर आते हैं। इन जिलों में बिना जिला पंचायत की अनुमति के कुछ नहीं हो सकता। यह सब तभी संभव है जब केंद्र सरकार इन्हें संविधान के मुताबिक यह अधिकार देगी। दूसरी मांग के पीछे भी कारण है। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू-कश्मीर में तो विधानसभा बची हुई है लेकिन लद्दाख से विधायक नहीं चुने जाने का प्रावधान किया गया है। पहले यहां से चार एमएलए चुनकर जम्मू-कश्मीर विधान सभा में लद्दाख का प्रतिनिधित्व करते थे। लोगों के आक्रोश का एक बड़ा कारण यह भी है। इनका आरोप है कि अब उनकी बात सरकार तक पहुंचाने का कोई उचित माध्यम नहीं है। जब से नई व्यवस्था लागू हुई तब से सरकारी नौकरियों का संकट बढ़ गया है। पहले जम्मू-कश्मीर पब्लिक सर्विस कमीशन के माध्यम से अफसरों की भर्तियाँ होती थीं तो लद्दाख को भी मौका मिलता था। आंदोलनकारियों का आरोप है कि बीते पांच साल में राजपत्रित पदों पर एक भी भर्ती लद्दाख से नहीं हुई है। गैर-राजपत्रित पदों पर छिटपुट भर्तियों की जानकारी जरूर सामने आई है। पर, लद्दाख में बेरोजगारी बढ़ी है। पढे-लिखे उच्च शिक्षित लोग छोटे-छोटे व्यापार करने को मजबूर हैं। बेहद कम आबादी होने की वजह से बिक्री न के बराबर होती है। दुकानें बंद करने की मजबूरी आन पड़ी है। पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर सोनम वांगचुक का कहना है कि केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने के बाद से लद्दाख में उद्योगों की संख्या बेतहाशा बढ़ जाने का खतरा है। इससे यहां कि नाजुक भगौलिक परिस्थिति और पर्यावरण को बेहद खतरा है। आने वाले दिनों में इस तरह के अनशन को और आगे बढ़ाने की बात भी चल रही है।
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